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Showing posts from January, 2012

माँ की पहचान

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            माँ की पहचान खुदा ने पूछा मुझसे  ऐसा तेरे पास क्या है ?  जिसपे तू इतना घमंड करता है ...... मैंने कहा वो .......वो ...........मेरी माँ  है , ऐसे आश्चर्य से देखते हुए खुदा ने कहा ?? माँ ....?.........?   तो बता कैसी है तेरी माँ .........? मैंने कहा मेरी माँ तो बिल्कुल माँ के जैसी है .....! इस जहा के दुख भरे अंगारे , जब इस शरीर को जालाने लगते है ........ तब जो अपने ममतामयी से छाव करती है ....वो ...ही ....है ....मेरी माँ .....!. हिम्मत के पुल जब टूटने लगते है , और आसुओ के झरने बेवजह ही बहने लगते है ...... तो सबसे पहले जो अपने हाथ हमारे सर पर  प्यार से फेरती है .....वो .....ही .....है ...मेरी माँ ......!   जब जब मिलती थी उसे  उसके हक़ की एक रोटी, उसमे भी वो चार हिस्से कर दे देती थी हमे ......... जो खुद भूखे रहकर हमे  भरपेट सुलाती थी ....वो......ही....है....मेरी माँ .......! पल में रूठी पल में मान जाती है ., कभी हँसते-हँसते रुलाती तो , कभी रोते -रोते हँसा जाती है .. है गंगा जैसी पवित्रता जिसमे ममता रही सदा सागर

बेरंग बचपन

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                                             बेरंग बचपन   जब बैठती हू अकेले में तो एक मंजर याद  आता है, वह मंजर ही था या ...........सच ये समझ नहीं  आता है | अगर ये सच है ... तो शर्मसार है मानवता  , है एक मानव और जानवर में भी फर्क ... तो ये फर्क समझ नहीं आता है | देखा था मैंने दो बच्चो को आपस में लड़ते हुए , इस मायूस जिन्दगी में अपनी हंसी से रंग भरते हुए | न तो थे बदन पे कपड़े और न ही था सर पर किसी का हाथ , फिर भी चल पड़े थे इस अंजान दुनिया में एक - दूजे के साथ | बच्चे तो होते है खुदा का रूप ... न होती है उनमे कोई खोट , उन्हें न पता था की ये जालिम दुनिया देगी उन्हें हर कदम पर एक चोट | "क्यों गरीबी होती है इतना बड़ा अभिशाप , तो ये अभिशाप समझ नहीं आता है |" है एक मानव और जानवर में भी फर्क ... तो ये फर्क समझ नहीं आता है | जिस उम्र में होने चाहिए थे उनके हाथो में खिलौने , फिर किसने छीन लिए उनके ये सुंदर सपने सलौने |  कोई छोड़ देता है इन्हें मंदिरों की सिढियो पर ,  तो कोई फेंक देता है अपनी बदनसीबी समझकर | "क्यों कोई समझता ही नही ये है इश्वेर