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मेरी डायरी की शायरी

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मेरी डायरी की शायरी   ( मेरी डायरी में से पेश हैं कुछ  शायरी की  झलकिया .......) 1 . कोई कहता है कैसी अनसुलझी किताब हु मैं ..... और ...! कोई पढ़ लेता हैं यूँ जैसे  कोई खुली किताब हु मैं ... 2 . "भरती हूँ उन तमाम रंगों को रोजाना तेरे दामन में .... ए जिन्दगी ............ न जाने किस रंग की तलाश में तू , उदास है अब तक ....." 3 . "ये कैसी कश्मोकश है तेरे मेरे दरमिया.......... इकरार भी ...है इनकार भी ....है फिर कहते हो कभी की...... हमे तुमसे प्यार भी है ।" 4 . " हाय ये तेरी नजरो का पैनापन इतनी गहराई समाई है इनमे की अब तो तैरने से भी डर लगता है ....." 5 . "जाने किस बात की सज़ा दी उन्होंने हमे ............. पहले कुछ न कह कर भी रुलाते रहे ....... और आज ...... इतना कुछ कह कर भी रुला दिया ....." 6 . "हमने...उन्हें , कभी लोगो से बचाया , कभी जमाने से छुपाया ... कमबख्त ..... दीदार इतना जिद्दी था उनका , की हमारी ही नजरो से न बच पाया ........" 7 . "डरते थे हम.....जिस अंजाम के डर
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माँ का ख़त- (मदर्स डे पर विशेष )                                                        कैसे मैं तुम्हे पढ़ा दूँ ........ माँ का खत है ये मेरे दोस्तों  कैसे मैं तुम्हे पढ़ा दूँ ! इस आइने में जो तस्वीर है  कैसे मैं तुम्हे दिखा दूँ !........... अपनी तस्वीर को आँखों से  तो सभी लगाते  है   बनी मेरी तकदीर जिस तस्वीर से  वो सूरत तुम्हे कैसे दिखा दूँ !....... कैसे दिखा दूँ ...? बिना काजर की वो आँखे  जो खुलते ही सवेरा .. झपकते ही शाम  कर देती है............... न जाने कितनी तलब हैं  हमारी आहट की उसको  जिसे देखते ही वो सुकून  की साँस भर  लेती है  .... कई बार रो-रो कर हमने, उसके आँचल को भिगोया  पर न जाने उसने किस अंदाज़ से  हर बार अपने आंसुओ को हमसे छुपाया  इन अनमोल आंसुओं के मोल को  इस खत में कैसे बता दूँ !....... ऐ  दोस्त अब तू ही बता  ये खत मैं तुम्हे कैसे पढ़ा दूँ !..... अपनी चाहत को न देखा न उसने  हमारी  हर चाहत के आगे  बस हमारे चेहरों पे  खिली हंसी से ... ख़ुशी मिलती थी उसको........... हिम्मत तो न थी वो  बोल सक