काश!
(कुछ दूर जो चलते तुम, कुछ और समझ पाता
कुछ देर ठहरते तुम तो कुछ और भी कह पाता)
कुछ देर ठहरते तुम तो कुछ और भी कह पाता)
यही सोचकर कि आज नहीं कल, पर कब
तुमसे अपने दिल की बात कह पाता।
पल दिन बन गए और दिन महीने
कई साल तो यों ही बीत गए।
पर बात दिल की जुबां पर न ला पाया
कमबख्त इस इश्क ने
न जाने कौन सा ताला लगाया।
पर अब बात इजहार की नहीं एहसास की है
गर वो समझ गए हमारे जज्बातों को
तो समझूँगा
इस इंतजार का मैंने वाकई मीठा फल पाया।
- अर्चना चतुर्वेदी
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