आखिर किसके हैं बजरंग बलि ?




ड़े दिनों बाद एक ऐसी फिल्म पर्दे पर आई है जिसने दो देशों की ही नहीं बल्कि दो अलग-अलग धर्मों के बीच की दूरियां भी कम की है। जी हां मैं बजरंगी भाईजान फिल्म की ही बात कर रही हूँ। लेकिन एक सवाल वो दर्शकों के मन में जरूर पैदा कर गई है.. कि ये बजरंग बलि जी है किसके ? हिन्दूओं के या मुसलमान लोगों के। ये बात अब बहस का मुद्दा बनती जा रही है। सच्चाई तो ये है कि इन दोनों को ही इसका जवाब पता है लेकिन डर और अहम के बीच बस ये बयां नहीं कर पाते। और जो बयां करते हैं बेचारे वह फंस जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ लकी के साथ...

फिल्म खत्म होने के बाद जब लकी सिनेमा हॉल से बाहर निकल रहा था तो कुछ लोग बजरंगी बलि जी का धर्म डिसाइड करने में लगे हुए थे। यही कुछ 12 से 13 लोग थे। कुछ पढ़े-लिखे लड़के, लड़कियां और कुछ बुर्जुग थे। बड़ी दुविधा में थे बेचारे। लकी ने सोचा चलो भाई इस चर्चा का हिस्सा ही बन लिया जाए। और ये भी पता कर लिया जाए कि बजरंग बलि जी आखिर है किसके?

चर्चा का मुद्दा भी गरम था और महौल भी। ऐसा लग रहा था मानो संसद चल रही हो। पक्ष-विपक्ष दोनों ही फुल जोश में थे। इसी बीच किसी महान ने धर्मवाद की हवा छोड़ दी। फिर क्या था पूरी साम्रगी तो वहां पहले से ही मौजूद थी। किसी ने घी डाल दिया। किसी कपूर डाला दिया। आग की लपटे अपने भयंकर रूप लेने लगी। वही उनमें से एक महोदय को यह बहस कुछ ठंडी लग रही थी तो उन्होंने पेट्रोल ही डाल दिया। रही सही कसर सब पूरी हो गई। आग भभक पड़ी। जो समूह वहां पर पहले इकट्ठा हुआ था। वह अब दो समुदायों में बंट गया। और लकी बीच में ही मूर्खों की तरह खड़ा रह गया। फिर एक जनाब ने पूछा उससे अरे भाई साहब..... आप का धर्म क्या है..?” हिन्दू है तो हमारी तरफ आ जाएं और अगर नहीं तो उनकी तरफ चले जाएं।

उस समय लकी अपने आप को पी.के (आमिर खान की फिल्म वाला) समझ बैठा। यही सोचने लगा की ई बुड़बक्क का कह रहा है.. का हमार गोला इनके गोला से फरक है का हम ठहरे ट्यूबलाइट तो हम पीछे हो लेते हैं। सब ज्ञानी जन लगे रहो।

फिर चर्चा शुरू हुई-

एक अंकल जी बोले- हमारे प्रभु हैं ही इतने प्रभावशाली जो हर धर्म का मनुष्य उनसे प्रेम करने लगता है।

दूसरे अंकल बोले-  जनाब ऐसा कुछ नहीं है... ये जरूरी नहीं की जो दिखता हो वो ही प्रभावशाली होता है... ऊपर वाले का कोई आकार नहीं है कोई रंग-रूप नहीं है.. फिर वो प्रभावशाली है.. उसकी मर्जी के आगे कोई बंदा क्या पत्ता तक नहीं हिल सकता।    

तब तक चर्चा के बीच में ही लकी एक गुस्ताखी कर बैठा ... उसने जोर से छींक दिया। और बोला – हे अल्हा, हे राम।

चर्चा की रफ्तार अचानक थम गई। लोग बड़ी गौर से लकी की ओर देखने लगे कि इसने अल्हा और राम का नाम एक साथ कैसे लिया। बड़ी हैरानी की बात है।

लकी ने कहा- आप सभी लोग मुझे क्यों ऐसे देख रहे हैं... कोई गलती हो गई क्या मुझसे।

एक महोदय ने कहा- तुमने अभी अल्हा और राम का नाम एक साथ कैसे लिया। किस धर्म के हो तुम ?

लकी ने कहा- हूँ तो मुसलमान, अम्मी को भगवान राम बड़े अच्छे लगते हैं तो वो मुझे राम बेटा कहती हैं और अब्बा रहीम कहते हैं... इस लिए दोनों ने मेरा नाम रामरहीम रख दिया और प्यार से लकी बुलाते हैं।

सभी लोग बड़ी गौर से लकी की बातें सुन रहे थे। कुछ लोगों का कहना था कि ऐसा नहीं होता है कही भी कि किसी को कुछ भी पंसद हो और वो अपने मनमाफिक धर्म में थोड़ी छेड़छाड़ कर सकता है। कुछ का कहना था कि ये अपने-अपने धर्म का प्रभाव है.. कुछ भी हो सकता है। और वही कुछ सद्भावना की मिसाल दे रहे थे।

लकी बोला- माफ कीजिएगा। मेरे मां-बाप ने मुझे अपने धर्म की खूब तालीम दी है। लेकिन दूसरे धर्म की इज्जत करनी भी सिखाई है। अम्मी कहती है कि तू बाहर जाकर किसको नीचा दिखाएगा। सब तेरे अपने ही तो हैं बाहर। जब तू भूखा होता है न, तो कोई तुझे रोटी खिला जाता है। जब तू उदास होता है तो कोई तुझे हंसा जाता है। जब तूझे किसी सहारे की जरूरत होती है तो कोई अपना हाथ आगे बढ़ा देता है। उस वक्त तू किस-किस से जा कर पूछेगा कि उसका धर्म क्या है?

अल्हा, राम, जीजस, नानक ये किसी एक धर्म के नहीं हैं। ये सभी ईश्वर के रूप है जो अपने-अपने तरीके से अपने बच्चों को सही राह दिखाते हैं। तुम इन्हें बांटने वाले कौन होते हो ? लेकिन, तुम ये तय कर सकते हो कि तुम किस गुरू की शरण में जाना चाहते हो। ठीक वैसे ही जैसे स्कूल में कई सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। उनके टीचर या मास्टर भी अलग-अलग होते हैं। अब उन हजारों बच्चों में किसी को किसी टीचर का और किसी दूसरे को किसी दूसरे टीचर के पढ़ाने का तरीका पसंद आता है। तो वो बच्चा उस टीचर का मुरीद हो जाता है। वैसे ही ईश्वर के ये अंश, ये रूप टीचर के तरह हमें राह दिखाते है और हमें जो दिल से पंसद आते हैं हम उन्हें अपना गुरू मान लेते हैं। ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती न उम्र की न धर्म की। फिर किसी से कैसा बैर।

तभी लकी ने वहां बैठे लोगों से पूछा- क्या आपको पता है कि बजरंगी भाईजान फिल्म को बनाने वाला फिल्म में बजरंगी का किरदार निभाने वाला रियल लाइफ में मुसलमान है। जब वो लोग हम सबको एकता के धागे में पिरोने के लिए धर्म से परे बात कर सकते है तो क्या हम शांति से इस संदेश को अपना भी नहीं सकते। ये तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इस संदेश को अपनाए या ठुकराए फिर इसमें धर्म के आहत होने की बात कहाँ से आ जाती है।

आप लोग बस इस बात को सोच कर देखिए की अगर इस दुनिया में, जहां न जाने कई धर्मों के लोग रहते हैं। वो सब अगर सिर्फ अपने-अपने ही धर्म के लोगों की मदद करें, अपनों को शिक्षा दें, अन्न दे, रक्षा करें। फिर क्या होगा। कैसे चलेंगी आप जिंदगी जरूरत के वक्त आप अपने धर्म वालों को कहाँ ढूँढोगें। सोचों .....

हार जाओंगे जनाब ... जितना नफरत कर लो तुम एक-दूसरे से... सच तो ये है कि तुम एक-दूसरे के बिना रह भी नहीं पाओंगे.... जब तक जीओ मुस्कुरा कर जीओ... नफरत से औरों का तो पता नहीं... लेकिन तुम्हारी जिंदगी जरूर नरक बन जाएगी। तो फिर किसी से उम्मीद किए बिना उसका अच्छा करोक्योंकि किसी ने कहा हैकि जो लोग फूल बेचते हैं उनके हाथ में खुश्बू अक्सर रह जाती है। बात आई समझ में।

लकी की बातें सुनकर लोगों में उत्साह जाग गया। सबने एक साथ तालियों की गड़गड़ाहट से उसकी बातों का स्वागत किया।

मुस्कुराते हुए लकी ने लोगों से कहा- बातों ही बातों में कितना समय बीत गया.... अंदाजा ही नहीं लगा। लेकिन, ये तो पता ही नहीं चला कि बजंरग बलि आखिर हैं किसके?

लोगों के बीच से जवाब आया- जा लकी अब घर जा... रूलाएँगा का क्या पगले!


 (अर्चना चतुर्वेदी)

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