पहचान
पहचान
असफलताओ से थक हार कर जब हमने सोचा बस अब और नहीं ..अब नहीं बढ़ सकता अब मैं और नहीं चल सकता , कब तक और रोऊंगा और कब तक छुपाऊ अपनी कमजोरी को किस से बताऊ की मुझे बस एक मौका चाहिए अपने को साबित करने का पर मुझे दुत्कार मिली एक नहीं कई बार मिली । माँ ने कहा तू तो मेरा लाल हैं बड़ा होशियार हैं जा अपनी पहचान बना , पर माँ तुझे कैसे बताऊ की यहाँ पहचान सिर्फ चेहरे की हैं और वो भी चमकदार जो लिपा पुता हो फरेब के नकाब से जो बोलता हो सिर्फ सिखाई हुई भाषा और एक शरीर हो जो ढाका हो कीमती लिवाजो से। इन सबके सामने मेरा हुनर छुप जाता हैं और फिर वही एक सवाल सामने आ जाता हैं क्या करू मैं ?
मजेदार बात तो देखो ये दुनिया जीने भी नहीं देती हैं और चैन से मरने भी नहीं देती . और तो और हम करना कुछ और चाहते हैं तो उसमे हमारी परछाई तक साथ नहीं देती . बांध लेती हैं हमें , जकड लेती हैं ....उन्ही अपनों के लिए जिनके लिए हम अपनी पहचान बनाने निकले थे ।
(अर्चना चतुर्वेदी )
अच्छा लिख रही हैं आप
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत सुक्रिया सर जी आपका
ReplyDeleteम श्री एडम्स केविन, Aiico बीमा ऋण ऋण कम्पनी को एक प्रतिनिधि हुँ तपाईं व्यापार को लागि व्यक्तिगत ऋण चाहिन्छ? तुरुन्तै आफ्नो ऋण स्थानान्तरण दस्तावेज संग अगाडी बढन adams.credi@gmail.com: हामी तपाईं रुचि हो भने यो इमेल मा हामीलाई सम्पर्क, 3% ब्याज दर मा ऋण दिन
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