लैपटॉप या लॉलीपॉप ....
लैपटॉप ले लो....... टैबलेट ले लो ......... वो भी बिल्कुल मुफ़्त हैं ऐसा ऑफर दुबारा नहीं मिलेगा तो आओ और ले जाओ वो भी वारंटी कार्ड के साथ. क्या लगता हैं आपको की ये किसी दुकानदार की कोई नई योजना हैं जनाब आप गलत फहमी में हैं ये हमारी उ. प सरकार की नई योजना हैं जो एक तरफ ''ऊंट के मुंह में जीरा " का काम कर रहा हैं तो दूसरी तरफ "आग में घी का काम ". ये योजना भले ही विद्यार्थी कल्याण के लिए बनाई गई हो पर फायदा तो सरकार का ही हो रहा हैं एक तीर से दो निशाने लगा रही हैं. ये जनता में प्रसाद भी बाँट रहे हैं और साथ ही प्रचार भी. यानि की जब आप ये लैपटॉप या टैब खोलेगे तो आपको इनकी सरकार के दर्शन करने ही पड़ेगे फिर वो चाहे वालपपेर , स्टीकर हो या फिर इनका बैग सभी पे रहेगा इनका नाम.पता नहीं इसमें कल्याण किसका हैं सरकार का या फिर विद्यार्थीयो का ? इसे आप आगे निकलने की होड़ कहे या फिर लुभाने का छलावा.
शिक्षा दिन पर दिन अपने भाव बढाती जा रही हैं कई लोग वो नहीं पढ़ पा रहे हैं जिसमे उनकी रूचि हैं क्योकि उन विषयों की फीस इतनी जयदा हैं, कही कही तो लोगो को उनकी जरूरत तक के लिए बिजली नहीं मिलती मोमबत्तीयों के सहारे पढ़ते हैं और तो और जंहा बीमार लोगो को खाने तक वाली टैबलेट नहीं मिलती वंहा ये टैब मुहिया करवा रहे हैं . उनका कहना हैं की हम आज के युवाओ को तकनीक के साथ जोड़ना चाहते हैं उन्हें विकास की बुलंदियों तक पहुँचाना चाहते हैं . इसमें कोई गुरेज़ नहीं हैं की तकनीक विकास का रास्ता तय करती हैं पर ये नहीं भूलना चाहिए की तकनीक भी इंसानी दिमाग से काम करती हैं और इसी दिमाग में कई ऐसे खुराफाती हरकते भी चलती रहती हैं जिनसे कई समस्याए और खड़ी हो जाती हैं जैसे अभी हाली में गूगल की एक वार्षिक सर्वे रिपोर्ट में ये सामने आया की पॉर्न साईट सर्च करने में भारत सबसे आगे हैं .और उसके बावजूद हम इनका रास्ता और साफ़ कर रहे हैं ये योजना कही न कही " बंदरो के हांथो में तलवार थमा देने " जैसी लग रही हैं . समस्या ये नहीं हैं की हमारे पास विकल्पों की कमी हैं समस्या ये हैं की हम उनका सही इस्तमाल नहीं जानते हैं आज भी हमारे देश में लोगो को भीड़ संग चलने की आदत हैं बिना सुने बिना समझे वे उसका हिस्सा बन जाते हैं इस योजना का लाभ लेने पहुचे युवाओ को ये तक नहीं पता था की कौन लोग इसमें भागीदारी ले सकते हैं और कौन नहीं . बस रेला चल पड़ा और उसमे ये भी जैसे लैपटॉप नही मानो लॉलीपॉप बँट रहा हो और सभी इसका स्वाद चखने के लिए निकल पड़े हैं .और आपको तो पता ही हैं की लॉलीपॉप का मज़ा तो सिर्फ कुछ की देर आता हैं उसके बाद तो ठन - ठन गोपाल . सरकार की योजनाओ का ये कुम्भ हर ५ साल बाद ही लगता हैं तो जिसको मौका मिलता हैं वो फट से डुबकी लगा लेता हैं .
समय के साथ चलने में होशियारी हैं लेकिन समय से आगे भागने में बेवकूफी ही हैं कहते हैं हाथी को खरीदना आसान हैं लेकिन उसके लिए चारा जुटाना बहुत मुश्किल हैं ऐसे देश में लैपटॉप और टैबलेट जैसे गेजेट्स को बाँटने से क्या फायदा होगा ? बिना बिजली , इन्टरनेट के इनका इस्तेमाल बेकार हैं . मात्र इनके दम पर गाँव और शहर के डिजिटल डिवाइस के अंतर को कम नहीं किया जा सकता जरूरत हैं तो इस बात की हमे इन गेजेट्स को हाथ में लेने से पहले इनके काबिल बनना होगा पहले उन जरुरतो को पूरा करना होगा जिससे आगे का रास्ता साफ़ हो सकें .
अर्चना चतुर्वेदी
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